Tuesday, 28 January 2020

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 23


नित्य गीता स्वाध्याय
प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से
अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक संख्या - 23

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं एतेऽत्र समागता:
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव:

शब्दार्थ

योत्स्यमानान् - युद्ध करने वालों को; अवेक्षे - देखूँ; अहम् - मैं; ये - जो; एते - वे; अत्र - यहाँ; समागता: - एकत्र; धार्तराष्ट्रस्य - धृतराष्ट्र के पुत्र की; दुर्बुद्धे: - दुर्बुद्धि; युद्धे - युद्ध में; प्रिय - मंगल, भला; चिकीर्षव: - चाहने वाले।

अनुवाद

मुझे उन लोगों को देखने दीजिये जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं।

तात्पर्य

यह सर्वविदित था कि दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र की साँठगाँठ से पापपूर्ण योजनाएँ बनाकर पाण्डवों के राज्य को हड़पना चाहता था। अतः जिन समस्त लोगों ने दुर्योधन का पक्ष ग्रहण किया था वे उसी के समानधर्मा रहे होंगे।

अर्जुन युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व यह तो जान ही लेना चाहता था कि कौन-कौन से लोग आये हुए हैं। किन्तु उनके समक्ष समझौता का प्रस्ताव रखने की उसकी कोई योजना नहीं थी।
यह भी तथ्य था कि वह उनकी शक्ति का, जिसका उसे सामना करना था, अनुमान लगाने की दृष्टि से उन्हें देखना चाह रहा था, यद्यपि उसे अपनी विजय का विश्वास था क्योंकि कृष्ण उसकी बगल में विराजमान थे।

इस प्रकार श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप के प्रथम अध्याय  कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षणके श्लोक संख्या - 23 का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ।

स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान

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