Monday, 20 January 2020

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 19


नित्य गीता स्वाध्याय

प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से
अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक 19

घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन्

शब्दार्थ

: - उस; घोष: - शब्द ने; धार्तराष्ट्राणाम् - धृतराष्ट्र के पुत्रों के; हृदयानि - हृदयों को; व्यदारयत् - विदीर्ण कर दिया; नभ: - आकाश; - भी; पृथिवीम् - पृथ्वीतल को; - भी; एव - निश्चय ही; तुमुल: - कोलाहलपूर्ण; अभ्यनुनादयन् - प्रतिध्वनित करता, शब्दायमान करता।

अनुवाद

इन विभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश तथा पृथ्वी को शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण करने लगी।

तात्पर्य

जब भीष्म तथा दुर्योधन के पक्ष के अन्य वीरों ने अपने-अपने शंख बजाये तो पाण्डवों के हृदय विदीर्ण नहीं हुए। ऐसी घटनाओं का वर्णन नहीं मिलता किन्तु इस विशिष्ट श्लोक में कहा गया है कि पाण्डव पक्ष के शंखनाद से धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय विदीर्ण हो गए।

इसका कारण स्वयं पाण्डव और भगवान् कृष्ण में उनका विश्वास है।

परमेश्वर की शरण ग्रहण करने वाले को किसी प्रकार का भय नहीं रह जाता चाहे वह कितनी ही विपत्ति में क्यों हो।

स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान

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