नित्य गीता स्वाध्याय
प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से
अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 13
तत: शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा:
।
सहसैवाभ्यहन्यन्त
स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥
शब्दार्थ
तत: - तत्पश्चात्; शङ्खा: - शंख;
च - भी; भेर्य:
- बड़े-बड़े ढोल,
नगाड़े; च - तथा;
पणव-आनक - ढोल
तथा मृदंग; गो-मुखा: - शृंग; सहसा
- अचानक; एव - निश्चय
ही; अभ्यहन्यन्त - एकसाथ
बजाये गए; स:
- वह; शब्द: - समवेत
स्वर; तुमुल: - कोलाहलपूर्ण; अभवत् - हो गया।
अनुवाद
तत्पश्चात्
शंख, नगाड़े, बिगुल,
तुरही तथा सींग
सहसा एकसाथ बज
उठे। वह समवेत
स्वर अत्यन्त कोलाहलपूर्ण
था।
स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण
✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्"
- गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान
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