Monday, 27 January 2020

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 21 - 22


नित्य गीता स्वाध्याय
प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से
अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक संख्या - 21 तथा 22

अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे

शब्दार्थ

अर्जुन: उवाच - अर्जुन ने कहा; सेनयो: - सेनाओं के; उभयो: - दोनों; मध्ये - बीच में; रथम् - रथ को; स्थापय - कृपया खड़ा करें; मे - मेरे; अच्युत - हे अच्युत; यावत् - जब तक; एतान् - इन सब; निरीक्षे - देख सकूँ; अहम् - मैं; योद्धुकामान् - युद्ध की इच्छा रखने वालों को; अवस्थितान् - युद्धभूमि में एकत्र; कै: -  किन-किन से; मया - मेरे द्वारा; सह - एक साथ; योद्धव्यम् - युद्ध किया जाना है; अस्मिन् - इस; रण - संघर्ष, झगड़ा के; समुद्यमे - उद्यम या प्रयास में।

अनुवाद

अर्जुन ने कहा - हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले चलें जिससे मैं यहाँ उपस्थित युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों की इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ।

तात्पर्य

यद्यपि श्रीकृष्ण साक्षात् श्रीभगवान् हैं, किन्तु वे अहैतुकी कृपावश अपने मित्र की सेवा में लगे हुए थे। वे अपने भक्तों पर स्नेह दिखाने में कभी नहीं चूकते इसीलिए अर्जुन ने उन्हें अच्युत कहा है।

सारथि रूप में उन्हें अर्जुन की आज्ञा का पालन करना था और उन्होंने इसमें कोई संकोच नहीं किया, अतः उन्हें अच्युत कह कर सम्बोधित किया गया है। यद्यपि उन्होंने अपने भक्त का सारथि-पद स्वीकार किया था, किन्तु इससे उनकी परम स्थिति अक्षुण्ण बनी रही।

प्रत्येक परिस्थिति में वे इन्द्रियों के स्वामी श्रीभगवान् हृषीकेश हैं। भगवान् तथा उनके सेवक का सम्बन्ध अत्यन्त मधुर एवं दिव्य होता है।

सेवक स्वामी की सेवा करने के लिए सदैव उद्यत रहता है और भगवान् भी भक्त की कुछ कुछ सेवा करने की कोशिश में रहते हैं। वे इसमें विशेष आनन्द का अनुभव करते हैं कि वे स्वयं आज्ञादाता बनें अपितु उनके शुद्ध भक्त उन्हें आज्ञा दें। चूँकि वे स्वामी हैं, अतः सभी लोग उनके आज्ञापालक हैं और उनके ऊपर उनको आज्ञा देने वाला कोई नहीं है। किन्तु जब वे देखते हैं कि उनका शुद्ध भक्त आज्ञा दे रहा है तो उन्हें दिव्य आनन्द मिलता है यद्यपि वे समस्त परिस्थितियों में अच्युत रहने वाले हैं।

भगवान् का शुद्ध भक्त होने के कारण अर्जुन को अपने बन्धु-बान्धवों से युद्ध करने की तनिक भी इच्छा थी, किन्तु दुर्योधन द्वारा शान्तिपूर्ण समझौता करके हठधर्मिता पर उतारू होने के कारण उसे युद्धभूमि में आना पड़ा।
अतः वह यह जानने के लिए अत्यन्त उत्सुक था कि युद्धभूमि में कौन-कौन से अग्रणी व्यक्ति उपस्थित हैं। यद्यपि युद्धभूमि में शान्तिप्रयासों का कोई प्रश्न नहीं उठता तो भी वह उन्हें फिर से देखना चाह रहा था और यह देखना चाह रहा था कि वे इस अवांछित युद्ध पर किस हद तक तुले हुए हैं।

इस प्रकार श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप के प्रथम अध्यायकुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षणके श्लोक संख्या - 21 तथा 22 का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ।

स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान

No comments:

Post a Comment