Wednesday, 19 February 2020

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 25


नित्य गीता स्वाध्याय

प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से
अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक संख्या - 25
भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां महीक्षिताम्
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति

शब्दार्थ

भीष्म - भीष्म पितामह; द्रोण - गुरु द्रोण; प्रमुखत: - के समक्ष; सर्वेषाम् - सब के; - भी; मही-क्षिताम् - संसार भर के राजा; उवाच - कहा; पार्थ - हे पृथा के पुत्र; पश्य - देखो; एतान् - इन सब को; समवेतान् - एकत्रित; कुरून् - कुरुवंश के सदस्यों को; इति - इस प्रकार।

अनुवाद

भीष्म, द्रोण तथा विश्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो।

तात्पर्य

समस्त जीवों के परमात्मास्वरूप भगवान् कृष्ण यह जानते थे कि अर्जुन के मन में क्या बीत रहा है।
इस प्रसंग में हृषीकेश शब्द का प्रयोग सूचित करता है कि वे सब कुछ जानते थे।

इसी प्रकार पार्थ शब्द अर्थात् पृथा या कुन्तीपुत्र भी अर्जुन के लिए प्रयुक्त होने के कारण महत्त्वपूर्ण है। मित्र के रूप में वे अर्जुन को बता देना चाहते थे कि चूँकि अर्जुन उनके पिता वसुदेव की बहन पृथा का पुत्र था इसीलिए उन्होंने अर्जुन का सारथि बनना स्वीकार किया था।

किन्तु जब उन्होंने अर्जुन सेकुरुओं को देखोकहा तो इससे उनका क्या अभिप्राय था? क्या अर्जुन वहीं पर रुक कर युद्ध करना नहीं चाहता था? कृष्ण को अपनी बुआ पृथा के पुत्र से कभी भी ऐसी आशा नहीं थी।

इस प्रकार से कृष्ण ने अपने मित्र की मन:स्थिति की पूर्वसूचना परिहासवश दी है।

इस प्रकार श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप के प्रथम अध्याय  कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षणके श्लोक संख्या - 25 का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ।

स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान

Thursday, 30 January 2020

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 24


नित्य गीता स्वाध्याय
प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से
अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक संख्या - 24

सञ्जय उवाच
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्

शब्दार्थ

सञ्जय: उवाच - संजय ने कहा; एवम् - इस प्रकार; उक्त: - कहे गए; हृषीकेश: -  भगवान् कृष्ण ने; गुडाकेशेन - अर्जुन द्वारा; भारत - हे भरत के वंशज; सेनयो: -  सेनाओं के; उभयो: - दोनों; मध्ये - मध्य में; स्थापयित्वा - खड़ा करके; रथउत्तमम् - उस उत्तम रथ को।

अनुवाद

संजय ने कहा - हे भरतवंशी! अर्जुन द्वारा इस प्रकार सम्बोधित किए जाने पर भगवान् कृष्ण ने दोनों दलों के बीच में उस उत्तम रथ को लाकर खड़ा कर दिया।

तात्पर्य

इस श्लोक में अर्जुन को गुडाकेश कहा गया है। गुडाका का अर्थ है नींद और जो नींद को जीत लेता है वह गुडाकेश है। नींद का अर्थ अज्ञान भी है।

अतः अर्जुन ने कृष्ण की मित्रता के कारण नींद तथा अज्ञान दोनों पर विजय प्राप्त की थी।

कृष्ण के भक्त के रूप में वह कृष्ण को क्षण भर भी नहीं भुला पाया क्योंकि भक्त का स्वभाव ही ऐसा होता है।
यहाँ तक कि चलते अथवा सोते हुए भी कृष्ण के नाम, रूप, गुणों तथा लीलाओं के चिन्तन से भक्त कभी मुक्त नहीं रह सकता।

अतः कृष्ण का भक्त उनका निरन्तर चिन्तन करते हुए नींद तथा अज्ञान दोनों को जीत सकता है। इसी को कृष्णभावनामृत या समाधि कहते हैं।

प्रत्येक जीव की इन्द्रियों तथा मन के निर्देशक अर्थात् हृषीकेश के रूप में कृष्ण अर्जुन के मन्तव्य को समझ गए कि वह क्यों सेनाओं के मध्य में रथ को खड़ा करवाना चाहता है।
अतः उन्होंने वैसा ही किया और फिर वे इस प्रकार बोले।

इस प्रकार श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप के प्रथम अध्याय  कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षणके श्लोक संख्या - 24 का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ।

स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान

Tuesday, 28 January 2020

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 23


नित्य गीता स्वाध्याय
प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से
अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक संख्या - 23

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं एतेऽत्र समागता:
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव:

शब्दार्थ

योत्स्यमानान् - युद्ध करने वालों को; अवेक्षे - देखूँ; अहम् - मैं; ये - जो; एते - वे; अत्र - यहाँ; समागता: - एकत्र; धार्तराष्ट्रस्य - धृतराष्ट्र के पुत्र की; दुर्बुद्धे: - दुर्बुद्धि; युद्धे - युद्ध में; प्रिय - मंगल, भला; चिकीर्षव: - चाहने वाले।

अनुवाद

मुझे उन लोगों को देखने दीजिये जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं।

तात्पर्य

यह सर्वविदित था कि दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र की साँठगाँठ से पापपूर्ण योजनाएँ बनाकर पाण्डवों के राज्य को हड़पना चाहता था। अतः जिन समस्त लोगों ने दुर्योधन का पक्ष ग्रहण किया था वे उसी के समानधर्मा रहे होंगे।

अर्जुन युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व यह तो जान ही लेना चाहता था कि कौन-कौन से लोग आये हुए हैं। किन्तु उनके समक्ष समझौता का प्रस्ताव रखने की उसकी कोई योजना नहीं थी।
यह भी तथ्य था कि वह उनकी शक्ति का, जिसका उसे सामना करना था, अनुमान लगाने की दृष्टि से उन्हें देखना चाह रहा था, यद्यपि उसे अपनी विजय का विश्वास था क्योंकि कृष्ण उसकी बगल में विराजमान थे।

इस प्रकार श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप के प्रथम अध्याय  कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षणके श्लोक संख्या - 23 का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ।

स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान

Monday, 27 January 2020

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 21 - 22


नित्य गीता स्वाध्याय
प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से
अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक संख्या - 21 तथा 22

अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे

शब्दार्थ

अर्जुन: उवाच - अर्जुन ने कहा; सेनयो: - सेनाओं के; उभयो: - दोनों; मध्ये - बीच में; रथम् - रथ को; स्थापय - कृपया खड़ा करें; मे - मेरे; अच्युत - हे अच्युत; यावत् - जब तक; एतान् - इन सब; निरीक्षे - देख सकूँ; अहम् - मैं; योद्धुकामान् - युद्ध की इच्छा रखने वालों को; अवस्थितान् - युद्धभूमि में एकत्र; कै: -  किन-किन से; मया - मेरे द्वारा; सह - एक साथ; योद्धव्यम् - युद्ध किया जाना है; अस्मिन् - इस; रण - संघर्ष, झगड़ा के; समुद्यमे - उद्यम या प्रयास में।

अनुवाद

अर्जुन ने कहा - हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले चलें जिससे मैं यहाँ उपस्थित युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों की इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ।

तात्पर्य

यद्यपि श्रीकृष्ण साक्षात् श्रीभगवान् हैं, किन्तु वे अहैतुकी कृपावश अपने मित्र की सेवा में लगे हुए थे। वे अपने भक्तों पर स्नेह दिखाने में कभी नहीं चूकते इसीलिए अर्जुन ने उन्हें अच्युत कहा है।

सारथि रूप में उन्हें अर्जुन की आज्ञा का पालन करना था और उन्होंने इसमें कोई संकोच नहीं किया, अतः उन्हें अच्युत कह कर सम्बोधित किया गया है। यद्यपि उन्होंने अपने भक्त का सारथि-पद स्वीकार किया था, किन्तु इससे उनकी परम स्थिति अक्षुण्ण बनी रही।

प्रत्येक परिस्थिति में वे इन्द्रियों के स्वामी श्रीभगवान् हृषीकेश हैं। भगवान् तथा उनके सेवक का सम्बन्ध अत्यन्त मधुर एवं दिव्य होता है।

सेवक स्वामी की सेवा करने के लिए सदैव उद्यत रहता है और भगवान् भी भक्त की कुछ कुछ सेवा करने की कोशिश में रहते हैं। वे इसमें विशेष आनन्द का अनुभव करते हैं कि वे स्वयं आज्ञादाता बनें अपितु उनके शुद्ध भक्त उन्हें आज्ञा दें। चूँकि वे स्वामी हैं, अतः सभी लोग उनके आज्ञापालक हैं और उनके ऊपर उनको आज्ञा देने वाला कोई नहीं है। किन्तु जब वे देखते हैं कि उनका शुद्ध भक्त आज्ञा दे रहा है तो उन्हें दिव्य आनन्द मिलता है यद्यपि वे समस्त परिस्थितियों में अच्युत रहने वाले हैं।

भगवान् का शुद्ध भक्त होने के कारण अर्जुन को अपने बन्धु-बान्धवों से युद्ध करने की तनिक भी इच्छा थी, किन्तु दुर्योधन द्वारा शान्तिपूर्ण समझौता करके हठधर्मिता पर उतारू होने के कारण उसे युद्धभूमि में आना पड़ा।
अतः वह यह जानने के लिए अत्यन्त उत्सुक था कि युद्धभूमि में कौन-कौन से अग्रणी व्यक्ति उपस्थित हैं। यद्यपि युद्धभूमि में शान्तिप्रयासों का कोई प्रश्न नहीं उठता तो भी वह उन्हें फिर से देखना चाह रहा था और यह देखना चाह रहा था कि वे इस अवांछित युद्ध पर किस हद तक तुले हुए हैं।

इस प्रकार श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप के प्रथम अध्यायकुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षणके श्लोक संख्या - 21 तथा 22 का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ।

स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान