Wednesday, 18 September 2019

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 6


नित्य गीता स्वाध्याय

प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से

अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक 6

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथा: ॥

शब्दार्थ

युधामन्यु: - युधामन्यु; च - तथा; विक्रान्त: - पराक्रमी; उत्तमौजा: - उत्तमौजा; च - तथा; वीर्य-वान् - अत्यन्त शक्तिशाली; सौभद्र: - सुभद्रा का पुत्र; द्रौपदेया: - द्रोपदी के पुत्र; च - तथा; सर्वे - सभी; एव - निश्चय ही; महा-रथा: - महारथी।

अनुवाद

पराक्रमी युधामन्यु, अत्यन्त शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रौपदी के पुत्र - ये सभी महारथी हैं।

स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान

Sunday, 15 September 2019

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 5


नित्य गीता स्वाध्याय

प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से

अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

धृष्टकेतुश्चेकितान: काशिराजश्च वीर्यवान्
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गव:

शब्दार्थ
धृष्टकेतु: - धृष्टकेतु; चेकितान: - चेकितान; काशिराज: - काशिराज; - भी; वीर्यवान् - अत्यन्त शक्तिशाली; पुरुजित् - पुरुजित्; कुन्तिभोज: - कुन्तिभोज; - तथा; शैब्य: - शैब्य; - तथा; नर-पुङ्गव: - मानव समाज में वीर।

अनुवाद
इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित्, कुन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं।

स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

 लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान


Thursday, 5 September 2019

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 4


नित्य गीता स्वाध्याय

प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से

अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक 4
                            
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथ:

शब्दार्थ

अत्र - यहाँ; शूरा: - वीर; महा-इषु-आसा: - महान धनुर्धर; भीम-अर्जुन - भीम तथा अर्जुन; समा: - के समान; युधि - युद्ध में; युयुधान: - युयुधान; विराट: - विराट; - भी; द्रुपद: - द्रुपद; - भी; महा-रथ: - महान योद्धा।

अनुवाद

इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं - यथा महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद।

तात्पर्य

यद्यपि युद्धकला में द्रोणाचार्य की महान शक्ति के समक्ष धृष्टद्युम्न महत्त्वपूर्ण बाधक नहीं था किन्तु ऐसे अनेक योद्धा थे जिनसे भय था। दुर्योधन इन्हें विजय-पथ में अत्यन्त बाधक बताता है क्योंकि इनमें से प्रत्येक योद्धा भीम तथा अर्जुन के समान दुर्जेय था। उसे भीम तथा अर्जुन के बल का ज्ञान था, इसीलिए वह अन्यों की तुलना इन दोनों से करता है।

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 3

नित्य गीता स्वाध्याय

प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से

अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक 3

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता

शब्दार्थ

पश्य - देखिये; एताम् - इस; पाण्डु-पुत्राणाम् - पाण्डु के पुत्रों की; आचार्य - हे आचार्य (गुरु) ; महतीम् - विशाल; चमूम् - सेना को; व्यूढाम् - व्यवस्थित; द्रुपदपुत्रेण - द्रुपद के पुत्र द्वारा; तव - तुम्हारे; शिष्येण - शिष्य द्वारा; धी-मता - अत्यन्त बुद्धिमान।

अनुवाद

हे आचार्य! पाण्डुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है।

तात्पर्य

परम राजनीतिज्ञ दुर्योधन महान ब्राह्मण सेनापति द्रोणाचार्य के दोषों को इंगित करना चाहता था।

अर्जुन की पत्नी द्रौपदी के पिता राजा द्रुपद के साथ द्रोणाचार्य का कुछ राजनीतिक झगड़ा था। इस झगड़े के फलस्वरूप द्रुपद ने एक महान यज्ञ सम्पन्न किया जिससे उन्हें एक ऐसा पुत्र प्राप्त होने का वरदान मिला जो द्रोणाचार्य का वध कर सके।

द्रोणाचार्य इसे भलीभाँति जानता थे किन्तु जब द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न युद्ध-शिक्षा के लिए उनको सौंपा गया तो द्रोणाचार्य को उसे अपने सारे सैनिक रहस्य प्रदान करने में कोई झिझक नहीं हुई।

अब धृष्टद्युम्न कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में पाण्डवों का पक्ष ले रहा था और उसने द्रोणाचार्य से जो कला सीखी थी उसी के आधार पर उसने यह व्यूहरचना की थी।

दुर्योधन ने द्रोणाचार्य की इस दुर्बलता की ओर इंगित किया जिससे वे युद्ध में सजग रहें और समझौता करे। इसके द्वारा वह द्रोणाचार्य को यह भी बताना चाह रहा था कि कहीं वे अपने प्रिय शिष्यों पाण्डवों के प्रति युद्ध में उदारता दिखा बैठे। विशेष रूप से अर्जुन उनका अत्यन्त प्रिय एवं तेजस्वी शिष्य था।

दुर्योधन ने यह भी चेतावनी दी कि युद्ध में इस प्रकार की उदारता से हार हो सकती है।


स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक

प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान

Monday, 2 September 2019

गीता स्वाध्याय अध्याय एक - श्लोक 2


नित्य गीता स्वाध्याय

प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से

अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक 2

सञ्जय उवाच
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत्

शब्दार्थ

सञ्जय: उवाच - संजय ने कहा;  दृष्ट्वा - देखकर; तु - लेकिन; पाण्डव-अनीकम् -  पाण्डवों की सेना को; व्यूढम् - व्यूहरचना को; दुर्योधन: - राजा दुर्योधन ने; तदा -  उस समय; आचार्यम् - शिक्षक, गुरु के; उपसङ्गम्य - पास जाकर; राजा - राजा; वचनम् - शब्द; अब्रवीत् - कहा।

अनुवाद

संजय ने कहा - हे राजन्! पाण्डुपुत्रों द्वारा सेना की व्यूहरचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे।

तात्पर्य

धृतराष्ट्र जन्म से अन्धा था। दुर्भाग्यवश वह आध्यात्मिक दृष्टि से भी वंचित था।
वह यह भी जानता था कि उसी के समान उसके पुत्र भी धर्म के मामले में अंधे हैं और उसे विश्वास था कि वे पाण्डवों के साथ कभी भी समझौता नहीं कर पायेंगे क्योंकि पाँचों पाण्डव जन्म से ही पवित्र थे। फिर भी उसे तीर्थस्थान के प्रभाव के विषय में सन्देह था। इसीलिए संजय युद्धभूमि की स्थिति के विषय में उसके प्रश्न के मंतव्य को समझ गया। अतः वह निराश राजा को प्रोत्साहित करना चाह रहा था। उसने उसे विश्वास दिलाया कि उसके पुत्र पवित्र स्थान के प्रभाव में आकर किसी प्रकार का समझौता करने नहीं जा रहे हैं। उसने राजा को बताया कि उसका पुत्र दुर्योधन पाण्डवों की सेना को देखकर तुरन्त अपने सेनापति द्रोणाचार्य को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने गया। यद्यपि दुर्योधन को राजा कह कर सम्बोधित किया गया है तो भी स्थिति की गम्भीरता के कारण उसे सेनापति के पास जाना पड़ा। अतएव दुर्योधन राजनीतिज्ञ बनने के लिए सर्वथा उपयुक्त था। किन्तु जब उसने पाण्डवों की व्यूहरचना देखी तो उसका यह कूटनीतिक व्यवहार उसके भय को छिपा पाया।


स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण

लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक

प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्" - गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान