नित्य गीता स्वाध्याय
प्रतिदिन एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से
अध्याय एक - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक संख्या - 25
भीष्मद्रोणप्रमुखत:
सर्वेषां च महीक्षिताम्
।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ॥
शब्दार्थ
भीष्म - भीष्म पितामह; द्रोण
- गुरु द्रोण; प्रमुखत: - के
समक्ष; सर्वेषाम् - सब के;
च - भी; मही-क्षिताम् - संसार भर
के राजा; उवाच
- कहा; पार्थ - हे पृथा
के पुत्र; पश्य
- देखो; एतान् - इन सब
को; समवेतान् - एकत्रित;
कुरून् - कुरुवंश के सदस्यों
को; इति - इस
प्रकार।
अनुवाद
भीष्म, द्रोण तथा विश्व
भर के अन्य
समस्त राजाओं के
सामने भगवान् ने
कहा कि हे
पार्थ! यहाँ पर
एकत्र सारे कुरुओं
को देखो।
तात्पर्य
समस्त जीवों के परमात्मास्वरूप
भगवान् कृष्ण यह जानते
थे कि अर्जुन
के मन में
क्या बीत रहा
है।
इस प्रसंग में हृषीकेश
शब्द का प्रयोग
सूचित करता है
कि वे सब
कुछ जानते थे।
इसी प्रकार पार्थ शब्द
अर्थात् पृथा या
कुन्तीपुत्र भी अर्जुन
के लिए प्रयुक्त
होने के कारण
महत्त्वपूर्ण है। मित्र
के रूप में
वे अर्जुन को
बता देना चाहते
थे कि चूँकि
अर्जुन उनके पिता
वसुदेव की बहन
पृथा का पुत्र
था इसीलिए उन्होंने
अर्जुन का सारथि
बनना स्वीकार किया
था।
किन्तु जब उन्होंने
अर्जुन से “कुरुओं
को देखो” कहा
तो इससे उनका
क्या अभिप्राय था?
क्या अर्जुन वहीं
पर रुक कर
युद्ध करना नहीं
चाहता था? कृष्ण
को अपनी बुआ
पृथा के पुत्र
से कभी भी
ऐसी आशा नहीं
थी।
इस प्रकार से कृष्ण
ने अपने मित्र
की मन:स्थिति
की पूर्वसूचना परिहासवश
दी है।
इस प्रकार श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप
के प्रथम अध्याय “कुरुक्षेत्र
के युद्धस्थल में
सैन्यनिरीक्षण” के श्लोक
संख्या - 25 का भक्तिवेदान्त
तात्पर्य पूर्ण हुआ।
स्रोत
"भगवद्-गीता यथारूप"
सम्पूर्ण विश्व में भगवद्-गीता का सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रामाणिक संस्करण
✒ लेखक
कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद्
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
आधुनिक युग में विश्वव्यापक हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रणेता तथा वैदिक ज्ञान के अद्वितीय प्रचारक
प्रेषक : वेदान्त-विज्ञानम्
"एवं परम्पराप्राप्तम्"
- गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त परम विज्ञान